प्रेम की मौत

प्रेम की मौत


शहर से दूर एक छोटी सी झील थी। जहां सिर्फ छुट्टियों के दिन ही थोड़ी चहल-पहल रहती थी। झील थी बड़ी सुरम्य,  आसपास घने बड़े पेड़ और पेड़ों के बीच शांत, निर्मल, मीठे जल की झील। पास ही एक पुराना मंदिर भी था। जहां साल में एक बार मेला भी लगा करता था, वहां स्थापित देवी देवताओं के लिए। पर सप्ताह के दिनों में यह जगह वीरान ही रहती थी।
कभी कभार कुछ प्रेमी युगल वहां के शांत वातावरण का आनंद उठाने चले आते थे या फिर वह लोग जिन्हें शहर के कोलाहल से दूर कुछ समय प्रकृति की गोद में गुजारने का मन करता था। साहिल और उसके दो-तीन दोस्त आज यहां पिकनिक मनाने आए थे। यह विचार साहिल का ही था कि उसका जन्मदिन इस झील के किनारे मनाया जाए।सबको यह विचार पसंद आया, आनन-फानन में बियर के 2 करेट खरीद लिए गए, कुछ नमकीन,चिप्स और सैंडविच पैक करवा लिए गए और साथ ही मां के हाथ के बने आलू के पराठे भी।

झील के किनारे पहुंचकर साहिल ने गाड़ी मंदिर के सामने खड़ी कर ली। सब ने पहले मंदिर में हाथ जोड़े फिर पास ही एक साफ-सुथरी जगह पर अपनी चादर बिछा ली और खाने पीने का सामान निकालने लगे। तभी साहिल ने सुझाया क्यूं ना बियर पीकर झील में नहाया जाए और तैरा जाए। सभी ने एकमत से उसका प्रस्ताव स्वीकार किया।
थोड़ी देर में एक एक दो दो बीयर पीने के बाद सब ने अपने कपड़े उतारे और झील में छलांग लगा दी। झील का पानी अपेक्षाकृत ठंडा था और ताजगी व स्फूर्ति भरने वाला भी। रमेश बोला, क्यों ना एक तैराकी की रेस हो जाए जो भी पहले उस पार तक जाकर वापस आएगा उसे ₹500 का इनाम मिलेगा। 1-2-3 कहकर सभी तेजी से उस पार की ओर तैरने लगे, रमेश सबसे आगे था वह तेजी से हाथ चला रहा था। वह सबसे आगे उस तरफ पहुंच गया और फिर हाथ हिला कर सबको अपनी जीत का बिगुल बजाने लगा। अचानक ही पास में पड़े एक बड़े पत्थर के पीछे तैरती किसी चीज पर उसकी निगाह पड़ी। सबको छकाने के लिए वह पत्थर की तरफ दौड़ा और उसने पानी के ऊपर झांकते उस कपड़े को अपनी तरफ खींचा।
तभी सब ने रमेश की एक जोरदार चीख सुनी। सभी झील से निकलकर उस चट्टान के पास भागे भागे गए, सामने का दृश्य देखकर उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई।
झील में चट्टान से उलझी एक लाश तैर रही थी। किसी युवती की लाश।
सबसे पहले साहिल ने अपना होश संभाला और झील के किनारे किनारे दौड़ते हुए स्थान पर पहुंचा जहां उनका सारा सामान रखा था। अपने कपड़ों में से मोबाइल निकाल कर तुरंत पुलिस को फोन किया और लाश की सूचना दी। तब तक सभी मित्र वहां आ चुके थे। उसने उन्हें बताया कि पुलिस आ रही है और हम को उनके आने तक यही रुकना होगा।
थोड़ी ही देर में पुलिस की जीप अपने दलबल सहित सायरन बजाती हुई वहां पहुंच गई। जीप की आगे की सीट पर बैठा रोबीला पुलिस अधिकारी कूदकर बाहर आया और अपने हाथ की छड़ी से इशारा करके पूछा, तुम में से साहिल कौन है। आगे बढ़कर साहिल ने अपना और अपने दोस्तों का परिचय दिया।
लाश को सबसे पहले किसने देखा? तुम लोग यहां क्या कर रहे हो? लाश अभी भी झील में है क्या? लाश कहां पड़ी है? इंस्पेक्टर ने एक के बाद एक सवालों की झड़ी लगा दी।
सर लाश वहां उस तरफ झील के पास एक चट्टान के पीछे है। सभी को साथ लेकर पुलिस की टीम घटनास्थल पर चली और इंस्पेक्टर ने निर्देश दिया, तुम लोग अपना बयान दर्ज करवा दो।
2 गोताखोरों ने मिलकर लाश को झील से बाहर निकाला। शायद वह 2 या 3 दिन या उससे भी अधिक समय से वही पड़ी थी। यह किसी 25 -26 वर्ष की युवती का शव था, जो कि बुरी तरह फूल चुका था। उसके बदन पर एक सलवार सूट था, जो कि जगह जगह से फट सा गया था, शायद शव के फूलने की वजह से।  पुलिस की टीम ने झील के अंदर और चारों ओर चप्पा चप्पा तलाश कर लिया पर वहां दूर-दूर तक और कुछ भी बरामद ना हुआ। फिर भी गोताखोर बार-बार झील में जाकर कुछ ढूंढते रहे। आखिर शाम 5:00 बजे साहिल और उसके दोस्तों को पूरा बयान देने के बाद इंस्पेक्टर ने जाने की इजाजत दी, साथ ही उन्हें आगाह भी कर दिया कि वह शहर से बाहर ना जाए और यदि जरूरत पड़ी तो उन्हें फिर से बुलाया जा सकता है।
दूसरे दिन अखबार में यह खबर सुर्खियों में थी। इधर दिन गुजारते गए और पुलिस की छानबीन चलती रही पर ना तो उस युवती का कोई पता ठिकाना मिल पाया, ना ही कोई उसको ढूंढने ही आया। धीरे-धीरे लोग इस घटना को भूलने लगे, बस लोगों का अब झील पर आना जाना कम हो गया
था।
कुछ दिन पहले
राखी पास के एक बड़े कस्बे में अपने परिवार के साथ हंसी-खुशी रहती थी। 25 बरस की राखी सारे घर की लाडली थी और हो भी क्यों ना घर में सबसे छोटी और चुलबुली जो थी। भरा पूरा परिवार था उसका मां, बाबूजी, दो भाई और दो भाभियां। ऐसे में उसकी हर इच्छा पूरे परिवार के लिए सबसे जरूरी बन जाती थी। इधर फरमाइश हुई उधर किसी ना किसी ने उसे पूरा किया।
ठाकुर साहब शहर के बहुत इज्जत दार व रईस इंसान थे। बहुत बड़ी जमीन के मालिक जो उनके पिताजी ने उनके लिए छोड़ी थी। साथ ही शहर की एकमात्र मिल के मालिक भी थे। तो पूरे शहर में उनका अपना ही अलग रौब था। लोग उन्हें राय साहब कहकर बुलाते थे। और ठाकुर साहब को अपने रुतबे और ऊंचे घराने पर बहुत गर्व था।
राखी उसके ठीक विपरीत दिल्ली में पढ़ी थी। उच्च शिक्षा व खुले माहौल की वजह से उसे जात-पात, ऊंच-नीच का कोई भेदभाव ना था। उसका मानना था कि सभी इंसान बराबर है। वह पढ़ने में बहुत होशियार भी थी इसीलिए उसको बाहर जाकर पढ़ने का मौका भी मिला था। उधर दोनों भाई शुरू से पढ़ाई लिखाई में कमजोर थे, तो सिर्फ किसी तरह 10वीं पास कर बाबूजी के काम में हाथ बंटाते थे। वही दोनों भाभी भी छोटे कस्बे से थी और काफी घरेलू भी।
पर राखी अपनी मां के गुण लेकर पैदा हुई थी। मां सबके लिए मांजी ही थी। उनका वरद हस्त और आशीर्वाद सभी को मिलता था। दान पुण्य करने वाली और ईश्वर में आस्था रखने वाली मां काफी हद तक खुले विचारों की थी।
उसी वर्ष राखी ने अपनी पढ़ाई पूरी की थी, अतः उसको दिल्ली से घर वापस बुला लिया गया था। घर पर सारा समय पढ़ने लिखने या फिर बाबूजी के हिसाब किताब का ख्याल रखने में गुजर जाता था और कभी-कभी सहेलियों की महफिल भी जमती थी।
ऐसे में 1 दिन राखी की मुलाकात माधव से हुई। माधव उन्हीं की मिल में सुपरवाइजर था, हिसाब किताब के सिलसिले में कोठी पर आया था।  माधव का व्यक्तित्व सादा पर बहुत आकर्षक था। उसके बातचीत का तरीका भी बहुत शालीन था। पहली ही मुलाकात में राखी उसे बेहद पसंद करने लगी। माधव हफ्ते में एक आद बार कोठी पर आता और हिसाब किताब के लिए राखी से मिलता, धीरे-धीरे यह मुलाकातें बढ़ने लगी। माधव गाहे-बगाहे काम के बहाने राखी से मिलने लगा और राखी भी तकरीबन हर रोज उसके आने का इंतजार करने लगी। जब वह नहीं आता तो राखी ही कोई बहाना बनाकर मिल चली जाती और देर तक माधव से बतियाती रहती। अब तो उन्होंने चोरी-छिपे बाहर भी मिलना शुरू कर दिया था। राखी को माधव का साथ बहुत रास आने लगा था।

वह शहर के दूसरी तरफ एक कमरा किराए पर लेकर रहता था। उसने बताया कि उसका परिवार पास ही के दूसरे शहर में रहता है। ऐसे ही एक दिन दोनों माधव के कमरे में बैठे थे ना जाने कब सारी मर्यादा लांघ गई और दोनों एक दूसरे के हो गए। राखी को ऐसा करने में कोई ग्लानि महसूस नहीं हुई क्योंकि वह माधव को मन ही मन अपना मान चुकी थी।

शहर छोटा था, धीरे-धीरे बातें बननी शुरू हो गई, पर कोई भी राय साहब के सामने कुछ भी कहने से कतरा रहा था। पर कहते हैं ना इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते एक दिन राखी के बड़े भाई ने सुन ही लिया।
उन्होंने माधव को अपने कमरे में बुलाया और बहुत बुरा भला कहा, साथ ही धमकी भी दी कि यदि वह उनकी बहन से फिर मिला तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा। शाम तक राखी को भी इस बात की खबर लग गई, उसने एक निर्णय ले लिया।

उसने अपनी सहेली के हाथ संदेशा भेज कर माधव को झील के पास वाले मंदिर पर बुलाया और वहां दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया। अब राखी और माधव पति-पत्नी के पवित्र बंधन में बंध चुके थे। दोनों ने रात माधव के कमरे पर सुहागरात की तरह मनाई। दूसरी सुबह राखी ने माधव को कुछ रुपए देकर अपने शहर लौट जाने की सलाह दी। माधव उसके साथ उसके घर जाना चाहता था, पर राखी ने उसे अपनी कसम दी और बोली कुछ दिनों में मां बाबूजी को समझा कर तुम्हें उनके पास ले जाऊंगी। माधव भारी मन से अपने शहर चला गया।

इधर राखी जब पूरी रात घर ना आई तो घर में सब चिंतित हो उठे। बड़े भैया शहर गए हुए थे। बाबूजी, मां पूरी रात परेशान थे। मझले भाई और दोनों भाइयों ने राखी के सारे मित्रों को फोन से पूछा पर किसी को कुछ पता नहीं था।
सुबह सवेरे राखी घर लौट आई, घर में घुसते ही मां ने पूछा, राखी तुम कहां थी? सब तुम्हें ढूंढ रहे हैं थे?
फिर अचानक उनकी नजर राखी की भरी मांग उसके चमकते सूट और चूड़ी भरे हाथों पर पड़ी।
हे राम!  कहकर मा अपनी ही जगह पर गिर पड़ी, राखी अभी तेजी से उनकी तरफ बढ़ ही रही थी कि अचानक भाई ने मजबूती से उसकी कलाई पकड़ ली।  जिन हाथों पर बरसों राखी बांधी थी और सुरक्षा का वचन लिया था, वही हाथ निर्दयता पूर्वक उसे वहां से घसीटते हुए कोठरी की तरफ ले जा रहे थे। सामने बाबूजी पत्थर की मूर्ति बने खड़े थे, उनकी आंखों से अंगारे बरस रहे थे। दोनों भाभी भी बुत बनी खड़ी थी और मां खामोशी से आंसू बहा रही थी।
भाई ने उसे बेरहमी से कोठरी में धकेल दिया और वह चारों खाने चित गिर पड़ी। उसे दरवाजा बंद होने, फिर कुंडा लगने और ताला लगने की आवाज आई और साथ ही भाई का कड़क स्वर भी खबरदार जो किसी ने दरवाजा खोला या उसकी मदद की या फिर घर से बाहर किसी को भी कुछ बताया।
राखी ना मालूम कितने दिन उस अंधेरी कोठरी में पड़ी रही।वह रोती रही, बिलखती रही, आवाज लगाती रही पर कोई उसकी मदद को ना आया। फिर शायद तीन-चार दिन बाद कोठरी का दरवाजा खुला, शरीर की पूरी जान समेटकर राखी लड़खड़ाते हुए खड़ी हुई। अचानक बड़े भाई का मजबूत हाथ उसके मुंह पर नागपाश की तरह कस गया। बाहर अंधेरा था, उसे लगभग घसीटते हुए बाहर खड़ी कार तक लाया गया और कार की डिग्गी में फेंक दिया गया। थोड़ी देर में कार चलने लगी और राखी पर बेहोशी सी छाने लगी, शायद भाई ने कुछ सुंघा दिया था।

आज का दिन
बहुत दिनों तक पुलिस को उस लड़की का पता ठिकाना ना मिल सका तो केस बंद करने की सोची जाने लगी। फिर एक दिन एक नवयुवक आया, वह काफी बदहवास सा था, बढ़ी हुई दाढ़ी, बेतरतीब बाल और करीब-करीब चिथडा वस्त्र उसके हाथ में 15 दिन पुराना अखबार था जिसमें उस युवती का फोटो छपा था।
लाश को देखकर कुछ क्षण वह पत्थर का बुत बना देखता रहा।
फिर लाश से लिपटकर फूट-फूट कर रोने लगा, उसका विलाप हृदय विदारक था।  करीब 15:20 मिनट बाद जब वह संयत हुआ तो उसने बताया कि यह शव राखी का है।

पुलिस की लाख कोशिशों के बावजूद यह पता नहीं चल पाया कि राखी ने आत्महत्या की थी या उसको किसी ने झील में फेंका था। आखिर कुछ दिनों बाद मामला रफा-दफा हो गया और राय साहब की इज्जत भी बच गई।

दोस्तों आज भी देश में हजारों युवक युवतियां जाति, धर्म, संप्रदाय या हैसियत के नाम पर बलि पर चढ़ाए जाते हैं। झूठी शान के चलते लाखों लोग अपने ही बच्चों को बेरहमी से कुचल देते हैं। ऐसा कब तक चलेगा? यह सवाल बार बार मन कचोटता है, आखिर कब हम इंसान बनेंगे? आखिर कब??

आभार - नवीन पहल – २०.१२.२०२१ 
आपके विचार मुझे जरूर लिख भेजें 🙏🙏✍️🌹

# प्रतियोगत HeTU


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4 Comments

Arshi khan

21-Dec-2021 10:48 AM

Apki rachna bahut achchi hoti h padhne me,

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Abhinav ji

21-Dec-2021 08:53 AM

Nice

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Shrishti pandey

21-Dec-2021 12:15 AM

Nice

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